पावन
गीत
मकर के हो सूर्य दूर भ्रांति होगी।
तब ही तो मकर संक्रांति होगी ।
1
पुराणों की गाथा और लोकमत की बात है।
देवों का दिन और राक्षसों की रात है।
सागर में इसी दिन मिली गंगा मात है ।
गंगासागर की बुडकी बड़ी विख्यात है ।
देवों के दिन से जग में शान्ती होगी ।
2
सुरसरि हो संगम हो सरिता स्नान हो।
घृत का हो कंबल का तिल का भी दान हो ।
जप तप हो पूजा हो श्रृद्धा अनुष्ठान हो ।
मिले मोक्ष मानव को निश्चय कल्यान हो।
सुख सारे पाए और श्रांति होगी ।
3
मारने कन्हाई कंस रोहिता पठाई है।
इसी दिन मारने को गोकुल में आई है ।
कर कर के कौतुक उसे मारा कंहाई है।
तब ही खुशी में सबने लोहडी मनाई है।
कभी न किसी को कोई क्लांति होगी ।
4
दान देते हैं खिचडी का खिचडी ही खाते हैं ।
त्यौहार खिचड़ी का मन से मनाते हैं ।
बुड़की में बुडकी तो सारे लगाते हैं ।
विनोदी विमल गीत बुडकी के गाते हैं ।
बदलेगा युग -जब क्रांति होगी।
तब ही मकर संक्रांति होगी।
विनोदी महाराजपुरी
डॉ. रामबली मिश्र
16-Jan-2023 07:55 PM
बेहतरीन
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अदिति झा
15-Jan-2023 07:41 PM
Nice 👍🏼
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Jan-2023 06:39 AM
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
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